इस ब्लॉग में आपको राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान (Pardon Powers of President and Governor) शक्तियां के बारे में जानकारी प्राप्त होगी। राष्ट्रपति और राज्यपाल की ये शक्तियां संवैधानिक शक्तियां है, अर्थात् इनका उल्लेख संविधान में किया गया है।
संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल को क्षमादान शक्तिय प्रदान की गई है। राष्ट्रपति को शक्तियां अनुच्छेद 72 और राज्यपाल को अनुच्छेद 161 में शक्तियां प्रदान की गई है। क्षमादान शक्तियां का उद्देश्य यह है कि यदि न्यायिक गलती हो तो उससे बचा जा सके, और यदि राष्ट्रपति या राज्यपाल दंड को अधिक कठोर समझता है तो उसका बचाव किया जा सके।
ये शक्तियां राष्ट्रपति और राज्यपाल को विवेकानुसार प्राप्त नहीं है, बल्कि राष्ट्रपति और राज्यपाल को क्षमादान से पहले राष्ट्रपति गृहमंत्रालय और राज्यपाल राज्य गृहमंत्रालय से विचार विमर्श करना होगा। संविधान में क्षमादान की कोई निश्चित समय सीमा नहीं दी गई है।
क्षमादान शक्तियां का क्षेत्र:
- संघीय विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए दिए दंड में राष्ट्रपति और राज्य विधि के विरुद्ध किसी अपराध के लिए राज्यपाल क्षमादान दे सकता है।
- राष्ट्रपति कोर्ट मार्शल (सैन्य न्यायालय) द्वारा दिए गए दंड पर भी क्षमादान दे सकता है, किंतु राज्यपाल नहीं।
- मृत्यु दंड को पूर्ण रूप से क्षमा केवल राष्ट्रपति ही कर सकता है, राज्यपाल मृत्यु दंड को स्थगित, दंड की प्रकृति आदि बदल सकता है किंतु क्षमा नहीं कर सकता।
राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां
1. क्षमा (pardon)
क्षमा करने का अर्थ है, सभी प्रकार के दंड से माफ करना, वक्ति को पूर्णतः मुक्त कर देना। मृत्यु दंड को क्षमा केवल राष्ट्रपति ही कर सकते है, राज्यपाल नहीं।
2. लगुकरण (commute)
इसका अर्थ है, की सजा के रूप को बदलकर कम करना। जैसे मृत्यु दंड को कठोर कारावास।
3. परिहार (Remission)
परिहार का अर्थ है कि दंड की प्रकृति बदले बिना उसकी समयावधि को कम करना, जैसे 14 वर्ष के कठोर कारावास के स्थान पर 10 वर्ष का कठोर कारावास।
4. विराम (Respite)
इसका अर्थ है कि अपराधी को दी गई सजा को किसी विशेष परिस्थिति के कारण कम करना, जैसे महिला के गर्भवती होने पर उसे मुक्त करना।
5. प्रविलंबन (Reprieve)
क्षमा को अस्थाई समय के लिए (विशेषकर मृत्यु दंड) रोकना, इसका उद्देश्य अपराधी को राष्ट्रपति से क्षमा याचना करने की लिए समय देना है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए विभिन्न निर्णयों के आधार पर सिद्धांत:
- दया याचिका करने वाले वक्ति को राष्ट्रपति या राज्यपाल के समक्ष मौखिक रूप से सुनवाई का अधिकार नहीं है,
- राष्ट्रपति या राज्यपाल साक्ष्य आदि का अध्ययन कर सकता है, तथा उनका निर्णय न्यायालय से भिन्न हो सकता है,
- राष्ट्रपति या राज्यपाल की इस शक्ति पर न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती, सिवाय की राष्ट्रपति या राज्यपाल का निर्णय किसी भेदभाव पूर्ण, विवेकारहित हो,
- यदि क्षमादान की एक याचिका रद्द होने पर अपराधी पुनः याचिका दायर नहीं कर सकता।
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