भारतीय संविधान की प्रस्तावना (PREAMBLE OF THE INDIAN CONSTITUTION in Hindi)

 प्रस्तावना को सर्वप्रथम संविधान में शामिल करने वाला देश अमेरिका है तथा भारत में प्रस्तावना का विचार अमेरिकी संविधान से लिया गया है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना प. जवाहर लाल नेहरू द्वारा (उद्देश्य प्रस्ताव) तैयार किया तथा 13 दिसबर 1946 को संविधान सभा के समक्ष पेश किया जिसे 22 जनवरी 1947 को सविधान सभा ने पारित किया।

 भारतीय संविधान की प्रस्तावना के चार तत्व:

  1. सविधान व अधिकार का स्रोत: भारत के लोगों से शक्ति प्राप्त करता है (हम भारत के लोग...)
  2.  भारत की प्रकृति: संप्रभु, समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व गणतांत्रिक राज्यववस्था वाला देश है।
  3.  संविधान के उद्देश्य: न्याय, स्वतंत्रता, समता व बंधुत्व संविधान के उद्देश्य है।
  4.  संविधान लागू होने की तिथि: 26 नवम्बर, 1949

भारतीय संविधान की प्रस्तावना (PREAMBLE TO THE INDIAN CONSTITUTION in Hindi)

प्रस्तावना के प्रमुख शब्द:

  1. संप्रभुता: संप्रभु शब्द का अर्थ है की भारत न तो किसी देश पर निर्भर है और न हीं किसी देश का डोमिनियन है। भारत अपने आंतरिक व बाहरी निर्णय खुद लेने में सक्षम है।
  2. समाजवादी: यद्यपि समाजवादी शब्द प्रस्तावना में 42 वें संविधान संशोधन (1976) में जोड़ा गया, किंतु समाजवादी लक्षण मूल संविधान में ही निहित थे। जो की नीति निदेशक तत्व में शामिल है। भारतीय समाजवाद लोकतंत्र समाजवाद (मिश्रित समाजवाद) जिसके अंतर्गत उत्पादन व वितरण के संसाधन सरकार और निजी दोनों के हाथों में हैं।
  3. धर्मनिरपेश: धर्मनिरपेक्ष शब्द को प्रस्तावना में 42 वें संविधान संशोधन (1976) में जोड़ा गया किंतु अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) स्पष्ट करता है की भारत मूलतः ही एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं। भारतीय धर्मनिरपेक्ष का अर्थ सभी धर्मों का समान संरक्षण।
  4. लोकतंत्र:भारत एक अप्रत्यक्ष लोकतांत्रिक देश है जिसके अंतर्गत जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि सर्वोच्चशक्ति का इस्तमाल करते हुए कानून बनाने तथा शासन करते है। यह दो प्रकार से होता है संसदीय और राष्ट्रपति के अधीन ।
  5. गणतंत्र: एक लोकतांत्रिक राजव्ययस्था को दो भागों में बता। जा सकता है राजशाही और गणतंत्र । राजशाही में राज्य का प्रमुख वंशानुगत होता है और गणतंत्र में राज्य का प्रमुख प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक निर्धारित समय के लिए चुनाव द्वारा चुना जाता है । भारत में राज्य का प्रमुख राष्ट्रपति का चुना अप्रत्यक्ष रूप से जनता के द्वारा चुने प्रतिनिधि चुनते है। 
  6. स्वतंत्रता: वक्तियों को बिना रोक टोक के अपने उच्चतम विकास की अनुमति देना। प्रस्तावना प्रत्येक व्यक्ति को अभिवक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता प्रदान करती है। हालांकि इन स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है की वक्ति को कुछ भी करने का अधिकार प्राप्त हो गया है।यदि किसी की स्वतंत्रता अन्य व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव डालती है तो वक्ति के अधिकार उस मात्रा तक सीमित किए जा सकते है।
  7. समता: समता का अर्थ है की किसी भी वक्ति को विषेशाधिकार की अनुपस्थिति, बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक वक्ति को समान अवसर प्रदान करने का प्रदान करना।
  8. बंधुत्व: बंधुत्व का अर्थ है भाईचारे की भावना। संविधान में एकल नागरिकता के तंत्र के माध्यम से भाईचारे की भावना को प्रोत्साहन करता है।
  9. न्याय: प्रस्तावना में तीन भिन्न न्याय शामिल हैं सामाजिक ,आर्थिक और राजनीतिक। इनकी सुरक्षा मौलिक अधिकार और नीति निदेशक सिद्धांतों के रूप में प्रधान की गई है।

  •       सामाजिक न्याय: प्रत्येक व्यक्ति के साथ जाति, रंग, धर्म, लिंग के आधार पर बिना भेदभाव किए समान व्यवहार।
  •       आर्थिक न्याय: किसी व्यक्ति के साथ आर्थिक कारणों के आधार पर भेदभाव नहीं तथा संपति की असमानता को दूर करना भी शामिल हैं।
  •      राजनितिक न्याय: प्रत्येक व्यक्ति को समान राजनितिक अधिकार प्राप्त होंगे राजनितिक दफ्तरों में प्रवेश से लेकर सरकार तक पहुंचने का अधिकार। 
प्रस्तावना संविधान का भाग है या नहीं? 
बेरूबाडी संघ मामले 1960 में उच्चतम न्यायालय ने कहा की प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के लिए एक कुंजी है। प्रस्तावना का प्रयोग संविधान की वाख्या समझने के लिए किया जा सकता है। प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है।
केशवानंद भारती मामले 1973 में उच्चतम न्यायालय ने अपने पुराने निर्णय को परिवर्तन करते हुए कहा की प्रस्तावना संविधान का एक भाग है, बाद में यही वाख्या सुप्रीम कोर्ट ने LIC of india मामले 1995 मामले में दी थी।

क्या प्रस्तावना में संशोधन संभव है ?
केशवानंद भारती मामले 1973 में उच्चतम न्यायालय ने फैसला दिया की प्रस्तावना संविधान का एक भाग है और इसमें संशोधन संभव है किंतु इसकी मूल संरचना में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। अब तक प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन हुआ है। 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 जिसके अंतर्गत प्रस्तावना में तीन शब्द जोड़े गए समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता। इस संशोधन की सुप्रीम कोर्ट ने वैध ठहराया।



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