राज्य के नीति निदेशक तत्व दिशा निर्देशों व सिद्धांतों का समूह है,जो की विधायिका और कार्यपालिका को संविधान से प्राप्त है। इनका उद्देश्य सामाजिक व कल्याण के लिए मार्गदर्शन करना है। ये स्वतंत्रता संग्राम के सामाजिक, आर्थिक दर्शन से प्रेरित है।
- राज्य के नीति निदेशक तत्वों को संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से 51 में मध्य शामिल किया गया है। नीति निदेशक तत्व का यह सिद्धांत संविधान निर्माताओं में आयरलैंड के संविधान से लिया गया है।
- राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP), भारत शासन अधिनियम 1935 में उल्लेखित अनुदेशों के समान है, जो ब्रिटिश गवर्नर को दिए गए थे, जबकि DPSP संविधान द्वारा विधायिका व कार्यपालिका के दिए गए है।
- नीति निदेशक तत्वों का मुख्य उद्देश्य लोककल्याणकारी राज्य का निर्माण करना है। आर्थिक व सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना करना है।
- नीति निदेशक तत्व प्रकृति में गैर न्यायोचित है, अर्थात् इसे किसी न्यायालय द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 36: राज्य शब्द की परिभाषा
- राज्य शब्द के अंतर्गत शामिल: संसद व राज्य विधानमंडल
- केंद्र सरकार, राज्य व स्थानीय सरकार
- अन्य सरकारी प्राधिकरण जो सरकार द्वारा संचालित है
अनुच्छेद 37: तत्वों का लागू होना
- इस भाग में लिखे गए उपबंध किसी न्यायालय द्वारा लागू नहीं किए जा सकते, इन्हें लागू करना सरकार का कर्तव्य है।
अनुच्छेद 38: लोक कल्याण के लिए सामाजिक व्यवस्था
- राज्य ऐसी सामाजिक व्यवस्था करे, जिसमें सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक न्याय की व्यवस्था को बढ़ावा देगा।
- राज्य आय की असमानताओं को कम करने का प्रयास करेगा, विभिन्न कार्यों में लगे लोगो को अवसरों को असमानताओं को कम करेगा।
अनुच्छेद 39: राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व
- पुरुष और स्त्री सभी को समान रूप से जीविका के समान साधन
- सामूहिक हित सर्वोत्तम रूप से साधन हो, भौतिक संसाधनों का उपयोग लोक हित में अधिक, एकीकेंदीकरण न हो।
- स्त्री पुरुष समान कार्य के लिए समान वेतन
अनुच्छेद 39A: समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता
- राज्य प्रयास करेगा कि विधिक तंत्र अभी के लिए सुलभ प्राप्त हो व निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त हो।
अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायतों को संगठन
- राज्य ग्राम पंचायतों का संगठन करने व उन्हें प्राप्त शक्तियां व अधिकार प्रदान करेगा।
अनुच्छेद 41: कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार
- राज्य प्रयास करेगा कि काम पाने, शिक्षा पाने, बेकरी, बुढ़ापा और बीमारी में सहायता प्रदान करेगा।
अनुच्छेद 42: काम की न्याय संगत और मानवोचित दशाओं व प्रसूति सहायता का उपबंध
- राज्य काम की न्याय संगत, मानवोचित दशाओं व मातृत्व सहायता प्रदान करे।
अनुच्छेद 43: कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि
- राज्य कर्मकारों को काम, निर्वाह, मजदूरी, अच्छा जीवनस्तर व अवकाश का संपूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएं निर्मित करने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद 43A: उधोगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना
- राज्य, किसी उधोग में लगे उपक्रमों या संगठनों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना सुनिश्चित करेगा।
अनुच्छेद 43B: सहकारी सोसाइटियों को प्रोत्साहन
- राज्य सहकारी समितियों के संगठन को प्रोत्साहन करेगा।
अनुच्छेद 44: समान नागरिक संहिता
- राज्य भारत में राज्य क्षेत्र में सभी नागरीको में लिए एक समान सिविल संहिता का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद 45: 6 वर्ष से कम की उम्र में देख रेख व प्रारंभिक शिक्षा
- राज्य प्रयास करेगा कि छः वर्ष के कम उम्र के बच्चों को प्रारंभिक देखरेख व प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त हो।
अनुच्छेद 46: अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति कमजोर वर्गों के शिक्षा व आर्थिक हितों की बढ़ावा
- राज्य अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की शिक्षा व आर्थिक होती का संरक्षण करने के प्रयास से नीति निर्माण करे।
अनुच्छेद 47: पोषाहार स्तर को बढ़ाने, जीवन स्तर सुधारना
- पोषण स्तर को सुधारने हेतु राज्य कदम उठाएगा।
अनुच्छेद 48: कृषि व पशुपालन का संगठन
- राज्य पशुपालन व कृषि में सहायक पशुओं की सुरक्षा व संघटन का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद 48A: पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन तथा वन व वन्य जीवों का संरक्षण
अनुच्छेद 49: स्मारकों तथा राष्ट्रीय महत्व के स्थानों व वस्तुओं का संरक्षण
अनुच्छेद 50: कार्यपालिका व न्यायपालिका का प्रथक्करण
- राज्य कार्यपालिका और न्यायपालिका के प्रथक्करण के हेतु प्रयाप्त कदम उठायेगा।
अनुच्छेद 51: अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को प्रोत्साहन
- राज्य अंतर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का प्रयास करेगा।
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