इस ब्लॉग आर्टिकल में हम मौलिक अधिकार के बारे में पढ़ेंगे। मूल अधिकार देश के नागरिकों को सरकार के मनमाने कानूनों से सुरक्षा प्रदान करते है। इन्हें मूल अधिकार इस लिए कहते है क्योंकि इन्हें संविधान द्वारा गारंटी व सुरक्षा प्रदान की गई है। मूल अधिकार नागरिक के भौतिक, बौद्धिक, नैतिक व आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं।
मौलिक अधिकार संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से अनुच्छेद 35 तक दिए गए है।मूल अधिकारों का प्रावधान भारतीय संविधान में अमेरिकी संविधान से लिए गए है। भाग 3 को भारतीय संविधान का मैग्नाकार्ट कहा जाता है। मैग्नाकार्ट लिखित अधिकार है जो सर्वप्रथम इंग्लेंड के किंग जॉन द्वारा 1215 में दिए गए थे।
भारतीय संविधान में 6 मौलिक अधिकार दिए गए है:
- समता का अधिकार ( अनुच्छेद 14 से 18)
- स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22)
- शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24 )
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28)
- संस्कृति और शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)
नोट: मूल संविधान में 7 मौलिक अधिकार थे। अनुच्छेद 31 संपति का अधिकार, किंतु 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 से इसे मौलिक अधिकार से कानूनी अधिकार बना दिया तथा इसे भाग 12 के अनुच्छेद 300A में शामिल किया गया।
विशेषताएं
- मूल अधिकार न्यायोचित होते है, अर्थात जब भी इनका हनन हो या उलंघन हो नागरिक को सीधे उच्चतम न्यायालय जाने का अधिकार होता है। इन्हें सुप्रीम कोर्ट सुरक्षा प्राप्त है। पीड़िता मौलिक अधिकार की प्राप्ति न होने पर अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट या अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय जा सकता है।
- इनमें से कुछ अधिकार केवल नागरिकों को प्राप्त है, जबकि कुछ नागरिकों के साथ विदेशी व्यक्ति और कानूनी व्यक्ति जैसे कंपनी आदि को भी प्राप्त है।
- मूल अधिकार असीमित नहीं हैं। राज्य इन पर तार्किक व युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है। ये प्रतिबंध तार्किक या उचित है या नहीं इसका निर्णय अदालत करती है।
- ये स्थाई नहीं होते है, संसद इनमें परिवर्तन, कटौती या कमी कर सकती है। किंतु संशोधन अधिनियम के द्वारा न की साधारण विधेयक द्वारा। इनके परिवर्तन से संविधान का मूल ढांचा पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
- राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान इनकी उपलब्धता (अनुच्छेद 20 व 21 में लिखित अधिकारों को छोड़कर) खत्म की जा सकती है। अनुच्छेद 19 में प्रदान किए गए 6 मूल अधिकारों को, युद्ध या बाहरी आक्रमण के आधार पर लगे आपातकाल के दौरान छीना जा सकता है, इसे आंतरिक विद्रोह के कारण लागू आपातकाल के दौरान नहीं छीना जा सकता।
- सशस्त्र बलों, अर्द्ध सैनिक बलों, पुलिस,गुप्तचरों संस्थाओं ऐसी सेवाओं से संबंधित सेवाओं के क्रियान्वयन पर संसद प्रतिबंध लगा सकती हैं ( अनुच्छेद 33 के तहत)।
अनुच्छेद 12: राज्य की परिभाषा
- इस भाग के उपबंधों में प्रयुक्त राज्य शब्द में परिभाषित है:
- केंद्रीय व राज्य सरकार, संसद व राज्य विधान परिषद,
- सभी स्थानीय निकाय जैसे पंचायत, नगरपालिकाएं,जिला बोर्ड आदि
- अन्य सभी वैधानिक या गैर संवैधानिक प्राधिकरण
- नोट: इसमें अदालत शामिल नहीं है।
अनुच्छेद 13: मूल अधिकारों से असंगत विधियां
- A) संविधान लागू होने से पूर्व की सभी विधियां उस मात्रा तक शून्य होंगी जहां तक वो अधिकारों को सीमित या अल्प करती हो।
- B) राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो की अधिकारों को सीमित या अल्प करती हो, ऐसी विधि उस मात्रा तक शून्य होगी जिस मात्रा तक अधिकारों को सीमित करती हो।
- 3) विधि के अंतर्गत: संसद या राज्य विधान मंडल द्वारा पारित कोई कानून, अध्यादेश, आदेश, उपविधि, कोई रूढ़ी या प्रथा भी विधि में शामिल होगी।
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